गुजरते है रोज वो बिन देखे हमे एक भी नजर,
डरते है शायद के कत्ल कि सजा न सुना दे हम
रास्ते कई है मकान तक जो पहुचाये उन्हे लेकिन
हमारी आंखोंसे यही गली रौशन हुआ करती है
देखकर अनदेखा करनेकी आदत हमने नही है पाली,
जो हमारीही नजरोंसे खुदको देखना मंजूर है उन्हे
डरते है शायद के कत्ल कि सजा न सुना दे हम
रास्ते कई है मकान तक जो पहुचाये उन्हे लेकिन
हमारी आंखोंसे यही गली रौशन हुआ करती है
देखकर अनदेखा करनेकी आदत हमने नही है पाली,
जो हमारीही नजरोंसे खुदको देखना मंजूर है उन्हे
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